मुंबई, 9 दिसंबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) भारत का वन्यजीव संरक्षण का सफर केवल प्रजातियों के नुकसान की कहानी नहीं है, बल्कि यह दुनिया के सबसे सफल संरक्षण प्रयासों की मिसाल भी पेश करता है। सरकारी कार्रवाई, वैज्ञानिक प्रबंधन और सामुदायिक सहयोग के कारण, कई प्रजातियाँ जो कभी विलुप्ति के कगार पर थीं, उन्होंने शानदार वापसी की है।
यहाँ भारत की उन पाँच प्रजातियों की वापसी की कहानियाँ हैं, जिन्होंने सिद्ध किया है कि समर्पित प्रयास से प्रकृति को बचाया जा सकता है:
1. एशियाई शेर (The Asiatic Lion)
- पिछला हाल: कभी शिकार और आवास के नुकसान के कारण इनकी संख्या घटकर 19वीं सदी के अंत में केवल 20 के आसपास रह गई थी। ये केवल गुजरात के गिर वन (Gir Forest) में पाए जाते थे।
- संरक्षण: जूनागढ़ के नवाब द्वारा निर्णायक हस्तक्षेप के बाद, प्रोजेक्ट लायन के तहत समर्पित संरक्षण और नियमित निगरानी ने इनकी आबादी को स्थिर किया।
- वर्तमान स्थिति: आज, गिर परिदृश्य में 670 से अधिक शेर घूम रहे हैं, जो भारत के सबसे सफल संरक्षण प्रयासों में से एक है।
2. एक सींग वाला गैंडा (The One-Horned Rhinoceros)
- पिछला हाल: असम का गौरव माने जाने वाले इस गैंडे की आबादी 1905 में सिमटकर 75 से भी कम रह गई थी।
- संरक्षण: काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (Kaziranga National Park) की स्थापना, कड़े अवैध शिकार विरोधी उपायों और आबादी को अन्य स्थानों पर ले जाने के प्रयासों ने इनकी किस्मत बदल दी।
- वर्तमान स्थिति: काजीरंगा में अब 2,400 से अधिक गैंडे हैं, जो दुनिया में गैंडों की सबसे बड़ी आबादी है। पोबितोरा, ओरंग और मानस में भी इनकी संख्या बढ़ रही है।
3. अमूर फाल्कन (The Amur Falcon)
- पिछला हाल: लाखों अमूर फाल्कन हर साल नागालैंड से प्रवास करते हैं। एक दशक पहले तक, उनके ठहरने के दौरान बड़े पैमाने पर शिकार उनके अस्तित्व के लिए खतरा बन गया था।
- संरक्षण: 2012 में बड़े पैमाने पर शिकार की रिपोर्ट के बाद स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर अभियान चलाया गया। ग्रामीणों ने पक्षियों के संरक्षक बनकर उन्हें सुरक्षित विश्राम स्थल प्रदान किए।
- वर्तमान स्थिति: आज, नागालैंड को दुनिया की अमूर फाल्कन राजधानी के रूप में जाना जाता है, और हाल के वर्षों में सामूहिक शिकार की कोई घटना सामने नहीं आई है।
4. ओलिव रिडले कछुआ (The Olive Ridley Turtle)
- पिछला हाल: ओडिशा का तट (विशेषकर गहिरमाथा और रुशिकुल्या) इन कछुओं के सामूहिक घोंसले (Arribada) बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। 1980 और 1990 के दशक में ट्रॉलिंग, तटीय विकास और अंडों के शिकार से इनकी संख्या बुरी तरह प्रभावित हुई थी।
- संरक्षण: संरक्षित समुद्री क्षेत्र, मौसमी मछली पकड़ने पर प्रतिबंध, टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइस और सामुदायिक गश्ती दल (beach patrols) जैसे उपायों ने इनकी संख्या को पुनर्जीवित किया।
- वर्तमान स्थिति: सालाना लाखों कछुए अब घोंसला बनाते हैं, और ओडिशा इस प्रजाति का वैश्विक गढ़ बना हुआ है।
5. बारासिंघा (दलदली हिरण) (The Barasingha / Swamp Deer)
- पिछला हाल: मध्य प्रदेश का राज्य पशु, यह दलदली हिरण 1960 के दशक में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में केवल 60 व्यक्तियों तक सिमट गया था।
- संरक्षण: आवास बहाली, शिकारियों से सुरक्षित बाड़े बनाना और सावधानीपूर्वक आबादी प्रबंधन जैसे उपायों ने प्रजाति को ठीक होने में मदद की।
- वर्तमान स्थिति: कान्हा में अब 800 से अधिक बारासिंघा मौजूद हैं, और उनकी आबादी को सतपुड़ा जैसे अन्य परिदृश्यों तक फैलाने के प्रयास चल रहे हैं।